जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर एवं पछवादून में उच्च शिक्षा को लेकर लम्बे समय से यहां के लोग आन्दोलनरत थे। अन्ततः समस्त क्षेत्रवासियों की मांग एवं भावनाओं को देखते हुए वर्ष 1993 में राजकीय महाविद्यालय डाकपत्थर स्थापित किया गया। हमे गर्व है कि इस महाविद्यालय का नाम वर्ष 2011 में वीर शहीद केसरी चन्द राजकीय महाविद्यालय डाकपत्थर (विकासनगर) देहरादून, एक ऐसे महापुरूष के नाम पर रखा गया जो स्वतन्त्रता सग्राम में अपने वीरता का परिचय देते हुए शहीद हो गये थे।
जौनसार बावर के क्यावा गांव में 01 नवम्बर 1920 ई0 को शहीद केसरी चन्द का जन्म हुआ। स्वतन्त्रता संग्राम जब चरम पर था तो केसरी चन्द भी रायल इण्डियन आर्मी सर्विस कोर में नायब सुबेदार के पद पर भर्ती हो गये और उसी वर्ष 1941 में ही फिरोजपुर में वायसराय कमिसन ऑफिसर का कोर्स पूर्ण कर लिया। इन्हीं दिनों द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था तभी 29 अक्टूबर 1941 को इन्हे मलाया में युद्ध के मोर्चे पर भेज दिया गया। इनकी वीरता के कारण 27 दिसम्बर 1941 को इस वीर साहसी युवक को सुबेदार के पद पर पदोन्नत कर दिया गया। युद्ध के मोर्चे पर 15 फरवरी, 1942 को जापानी फोज द्वारा इन्हे बन्दी बना लिया गया, परन्तु नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के नारे ’’तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा’’ से प्रभावित होकर वीर शहीद केसरी चन्द अग्रेजों के विरूद्ध ही लडने के लिए आजाद हिन्द फोज में भरती हो गये। आजाद हिन्द फोज में भी इनके साहस, पराक्रम व जोखिम उठाने की छमता को देखकर इन्हे कठिन से कठिन कार्य सौपें गये।
आजाद हिन्द फौज की ओर से लडते हुए इम्फाल के मोर्चे पर पुल उड़ाने के प्रयास के दौरान उन्हे ब्रिटिश फौज ने पकड़ लिया तथा दिल्ली लाकर इन्हे आर्मी एक्ट की दफा-41 के अन्तर्गत ब्रिटिश राज्य के खिलाफ युद्ध करने के आरोप में दिनांक 03 फरवरी 1945 को मृत्यु दण्ड की सजा सुनाई गई एवं मात्र 24 वर्ष 06 माह की अल्पायु में ही इस महान देश भक्त को 03 मई 1945 की प्रातः फाॅसी के तख्ते पर लटका दिया गया।
जौनसार बावर के क्यावा गांव में 01 नवम्बर 1920 ई0 को शहीद केसरी चन्द का जन्म हुआ। स्वतन्त्रता संग्राम जब चरम पर था तो केसरी चन्द भी रायल इण्डियन आर्मी सर्विस कोर में नायब सुबेदार के पद पर भर्ती हो गये और उसी वर्ष 1941 में ही फिरोजपुर में वायसराय कमिसन ऑफिसर का कोर्स पूर्ण कर लिया। इन्हीं दिनों द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था तभी 29 अक्टूबर 1941 को इन्हे मलाया में युद्ध के मोर्चे पर भेज दिया गया। इनकी वीरता के कारण 27 दिसम्बर 1941 को इस वीर साहसी युवक को सुबेदार के पद पर पदोन्नत कर दिया गया। युद्ध के मोर्चे पर 15 फरवरी, 1942 को जापानी फोज द्वारा इन्हे बन्दी बना लिया गया, परन्तु नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के नारे ’’तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा’’ से प्रभावित होकर वीर शहीद केसरी चन्द अग्रेजों के विरूद्ध ही लडने के लिए आजाद हिन्द फोज में भरती हो गये। आजाद हिन्द फोज में भी इनके साहस, पराक्रम व जोखिम उठाने की छमता को देखकर इन्हे कठिन से कठिन कार्य सौपें गये।
आजाद हिन्द फौज की ओर से लडते हुए इम्फाल के मोर्चे पर पुल उड़ाने के प्रयास के दौरान उन्हे ब्रिटिश फौज ने पकड़ लिया तथा दिल्ली लाकर इन्हे आर्मी एक्ट की दफा-41 के अन्तर्गत ब्रिटिश राज्य के खिलाफ युद्ध करने के आरोप में दिनांक 03 फरवरी 1945 को मृत्यु दण्ड की सजा सुनाई गई एवं मात्र 24 वर्ष 06 माह की अल्पायु में ही इस महान देश भक्त को 03 मई 1945 की प्रातः फाॅसी के तख्ते पर लटका दिया गया।